Jyotirlingon ki Katha

ॐ नमः शिवाय   -   हर हर महादेव 


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मेरे महादेव आदि हैं  अनंत भी हैं !
निर्गुण हैं तो सगुण भी यही हैं !
निराकार हैं तो साकार भी यही हैं !
समस्त कारणों के जनक भी यही हैं !
स्वयं कारण भी हैं और करता भी यही हैं ! भरता भी यही हैं और हर्ता भी यही हैं !समस्त लोकों स्वामी सबके पालनहार यही हैं !
समस्त सृष्टि इन्ही से उत्पन्न हुई है और अंत में इन्ही में समां जानी है !

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय 
भस्माङ्गरागाय महेश्वराय, 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, 
तस्मै नकाराय नमः शिवाय 

बारह ज्योतीर्लिंगा : 


मेरे भोलेनाथ की ऊर्जा बारह ज्योतिर्लिंगों के रूप में पृथ्वी पर सदैव विद्यमान रहती है , जिससे इस सृष्टि का चक्र चलते रहता है ! मेरे महादेव की ऊर्जा जिन बारह ज्योतिर्लिंगों के रूप में विद्यमान है उनके नाम इस प्रकार है !

१: सोमेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग (सोमनाथ) 

२: केदारनाथ ज्योतिर्लिंग

३: नागेश्वर ज्योतिर्लिंग 

४: विश्वेस्वर ज्योतिर्लिंग 

५: भीमशंकर ज्योतिर्लिंग 

६: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग 

७: बैजनाथ ज्योतिर्लिंग 

८: ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग 

९: महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग 

१०: पशुपतिनाथ ज्योतिर्लिंग     

११: त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग     

१२: रामेश्वर ज्योतिर्लिंग 



प्रत्येक ज्योतिर्लिंग की अपनी एक कथा है 
की कैसे उस ज्योतिर्लिंग की स्थापना हुई !
प्रत्येक ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से 
मेरे महादेव का आशीर्वाद एवं कृपा प्राप्त  हो 
जाती है!यदि कोई सच्चे मन से जल भी अर्पण 
करता है तो मेरे प्रभु प्रसन्न हो जाते है , ऐसे हैं 
मेरे भोलेनाथ !कोई भी इनके जैसा नहीं है , 
ये ऐसे देवता हैं जिनको बिना किसी नियम के 
प्राप्त किया जा सकता है ,इनकी पूजा करने के 
लिए किसी भी नियम की आवश्यकता नहीं है , 
कैसे भी पूजा करो , किसि भी भाव से पूजा करो 
मेरे भोलेनाथ का आशीर्वाद अवश्य प्राप्त होता है ! 
मेरे प्रभु केवल भाव के भूखे हैं , इन्हे और कुछ भी 
नहीं चाहिए !    
! हर हर महादेव  !  ॐ नमः शिवाय  ! 


                       अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का 
                     काल भी उसका क्या करे जो भक्त हो महाकाल का 

बैजनाथ ज्योतिर्लिंग की कथा:  महादेव के श्रेष्ठ भक्तों में रावण का नाम भी आता था , 

एक बार रावण ने सोचा की क्यों न मैं          
महादेव को अपने साथ लंका चलने 
के लिए कहूँ, अब भोलेनाथ तो ठहरे 
भोले, अपने भक्तों के लिए तुरंत कुछ 
भी करने के लिए तैयार हो जाते हैं इसलिए रावण के आग्रह पर भोलेनाथ ने लंका चलने के  लिए अपनी सहमति देदी और कहा रावण मैं तुम्हारे साथ चल तो रहा हूँ परन्तु इतना याद रखना की मैं तुम्हारे साथ लिंग रूप में चलूँगा और तुम मुझे कैलाश से लंका तक उठा कर ले चलोगे, मुझे भूमि पर मत रखना क्यूंकि जहाँ भी तुम मुझे भूमि पर रखोगे मैं वहीँ स्थापित हो जाऊंगा और फिर तुम मुझे हिला भी नहीं पाओगे  ! महादेव की बात को अपनी सहमति देते हुआ रावण उन्हें गोद में उठकर लंका पैदल ही चल दिया! परन्तु देवताओं ने सोचा की यदि रावण इन्हे लेकर लंका चला गया तो फिर उसका कोई भी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता , क्यूंकि रावण तो स्वयं महाकाल को अपने साथ लेकर जा रहा था , ऐसे में उसका कोई क्या बिगाड़ सकता हैं , सभी देवता बड़े चिंतित हुए , उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था की कैसे महादेव को रावण से मुक्त कराया जाए , तभी गणेशजी ने ये जिम्मेदारी अपने ऊपर ली की मैं पिताजी को रावण से मुक्त्त कराऊंगा! रावण अपने रास्ते में जा रहा था की गणेशजी जो की बैजू के रूप में थे एक चरवाहा का भेस बनाया हुआ था रास्ते में अपने पशुओं को चारा रहे थे, रावण को बहुत ज़ोर से प्यास लगी सोचा पानी तो कही भी दिख नहीं रहा, और यदि इस शिवलिंग को मैं धरती पर रखता हूँ तो ये शिवलिंग यहीं स्थापित हो जाएगा , अब क्या करू , रावण ने सोचा की इस चरवाहे से जल लेकर पीता हूँ, रावण गणेशजी के समीप गए और बोले क्या मुझे थोड़ा जल मिलेगा , बैजू ने कहा अभी तो मेरे पास जल नहीं है यदि आप मुझे थोड़ा समय दें तो मैं आपके लिए जल की व्यवस्था कर सकता हूँ , यही समीप ही एक जल का सरोवर है! रावण ने कहा ठीक है मैं तुम्हारी यहीं प्रतीक्षा करता हूँ , तुम जल लेकर जल्दी आना ! बैजू महाराज चले गए और थोड़ी दूर जाकर उन्होंने वरुण देव का आवाहन किया , वरुण देव के प्रगट होने पर गणेशजी जो की बैजू के भेष में थे ने कहा , हे वरुण देव मुझे ऐसा जल दीजिये जिसके पिने से जल का विस्तार पेट में होता रहे और लघुशंका करने में समय खूब लगे , वरुण देव ने एक सरोवर के सम्पूर्ण जल को कमंडल में डालकर बैजू महाराज को दे दिया , अब बैजू महारज ने जल रावण को पीने के लिए दिया, रावण के जल पीतेही उसका विस्तार पेट में होने लगा , क्यूंकि कमंडल में सरोवर का सम्पूर्ण जल था इसलिए रावण का पेट फूलने लगा, उसको लघुशंका की इच्छा होने लगी , रावण ने बैजू महाराज से आग्रह किया की कृपया कर इस शिवलिंग को आप पकडे रखे तब तक मैं लघुशंका कर के आता हूँ , बैजू महाराज ने शिवलिंग उठा लिया और कहा की हे राजन इस शिव लिंग को मैं केवल सूर्यास्त तक ही उठा के रखूँगा तत्पश्चात इसे भूमि पर रख दूंगा , रावण बोला कृपया कर ऐसा ना करें मैं जल्दी ही आ जाऊंगा , रावण लघुशंका करने लगा , क्यूंकि रावण के पेट में संपूर्ण सरोवर सूक्ष्म रूप में था इसलिए उसे लघुशंका में बहुत अधिक समय लगा जिसके फलस्वरूप बैजुमहराज सूर्यास्त होने के बाद शिवलिंग को वहीँ रखा और चले गए , शिवलिंग महादेव के कहे अनुसार वहीँ स्थापित हो गया , रावण ने जब ये देखा तो बहुत कुपित हुआ और महादेव से रावण ने अपनी भक्ति तोड़ दी , तभी से उस स्थान का नाम बैजनाथ धाम पड़ा और उस शिवलिंग को बैजू महाराज के नाम पर बैजनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम पड़ गया !

बोलो बाबा बैजनाथ की जय  - हर हर महादेव  - ॐ नमः शिवाय 
बोलो बाबा विश्वनाथ की जय - हर हर महादेव -  ॐ नमः शिवाय 
बोलो बाबा अमरनाथ की जय - हर हर महादेव - ॐ नमः शिवाय 






टिप्पणियाँ

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