सृष्टि की रचना
क्या आप जानते है कि "भगवान श्री भोलेनाथ" एक मात्र ऐसे भगवान हैं जो अजन्मे (जिनका जन्म नहीं हुआ हो) हैं!
कथा : एक बार जब "भगवान् श्री भोलेनाथ" का ध्यान टुटा, तो यूँही उनके मन में ख्याल आया की क्यूँ ना सृष्टि की रचना की जाये .....!
तब "भगवान श्री भोलेनाथ" ने मन में सृष्टि की रचना का सोच कर अपने दायें जांघ पर अमृत रगड़ दिया...वहाँ से "भगवान् श्री विष्णु" का प्रागट्य हुआ!
"भगवान् श्री विष्णु" कई वर्षों तक यूँही भटकते रहे , उनको अपने लक्ष्य का ज्ञान तक न था...एक बार अचानक आकाशवाणी हुई..."तुम मेरे रूप हो, मैं तुम्हारा जन्मदाता हूँ , तुम मेरी घोर तपस्या करो...तब मैं तुम्हे दर्शन दूंगा और तुम्हारा लक्ष्य बताऊंगा!
ऐसा कहकर "जटाधारी" अंतर्ध्यान हो गए!
"भगवान् श्री विष्णु" ने घोर तपस्या करके शिव जी को प्रसन्न कर लिया और सृष्टि की रचना का कार्य - भार सँभालने लगे !
मेरे भोलेनाथ महान हैं , इन जैसा कोई नहीं है!
शिव लिंगम : शिवलिंग के द्वारा ही समस्त ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति हुई है और समस्त ब्रह्माण्ड इस शिव लिंग पर ही टिका हुआ है!
शिव अनादि हैं, अनंत हैं , इनके जैसा और कोई दूसरा नहीं इसलिए तो ये देवों के देव "महादेव" हैं!
शंकर शिव भोले उमापति महादेव
शिव अनादि हैं, अनंत हैं , इनके जैसा और कोई दूसरा नहीं इसलिए तो ये देवों के देव "महादेव" हैं!
शंकर शिव भोले उमापति महादेव
ब्रह्मा जी को श्राप
जब विष्णु भगवान घोर तपस्या में लीन थे तो उनके शरीर से सहसा ही दूध की धारा निकलने लगी जिसके स्वरुप क्षीर सागर का निर्माण हुआ और तपस्या के दौरान उनके नाभि से ब्रह्मा जी की उत्त्पत्ति हुई, ब्रह्मा जी ने सोचा की मेरा जन्म कैसे हुआ, मेरी उत्त्पत्ति करने वाला कौन है , ऐसा सोचते एवं ब्रह्माण्ड में भटकते भटकते कई युग बीत गए पर उन्हें उनके प्रश्नों के उत्तर नहीं मिले, फिर जब विष्णु भगवान का ध्यान टुटा तो वो भी भटकने लगे और एक समय ऐसा आया जब विष्णु जी और ब्रह्मा जी दोनों आमने सामने आ गए, फिर क्या था दोनों आपस में लड़ने लग गए की मै बड़ा - मै बड़ा, तभी इनके समक्ष एक अग्नि पुंज लिंग रूप में प्रगट हुआ और उस अग्नि पुंज से आवाज आई की तुम दोनों में बड़ा कौन है इसका निर्णय मै करूँगा, तुम्हार रचयता मै हूँ, और फिर उस ज्योति स्वरुप लिंग में से महादेव प्रगट हुए, बोले इस अग्नि लिंग के लम्बाई नाप के आओ तुम दोनों में जो भी इस अग्नि लिंग की लम्बाई नाप लेगा वही बड़ा कहलायेगा, ब्रह्मा जी ऊपर की ओर और विष्णु जी निचे की ओर चल दिए, कई युगों तक दोनों भ्रमण करते रहे पर उन दोनों को उस अग्नि लिंग की लम्बाई ज्ञात नहीं हुई , विष्णु जी हार कर वापस लौट आये, परन्तु ब्रह्मा जी जब अपनी यात्रा पर थे तो रास्ते में केतकी के फूल मिले , केतकी से ब्रह्मा जी ने कहा तुम मेरे लिए शिव जी के सामने गवाही देना की मैंने इस लिंग का छोर पा लिया है , केतकी ने इस झूठ में ब्रम्हा जी का साथ दिया और उनके साथ शिव जी के पास पहुंचे , ब्रम्हा जी को देखकर विष्णु जी ने कहा की ब्रम्हा जी आपने तो इस लिंग का छोर पा लिया होगा , तब ब्रम्हा जी मुस्कुराते हुए बोले , हाँ , मैंने इस लिंग का छोर पा लिया है, ब्रम्हा जी की बात सुनकर शिव जी को बड़ा क्रोध आया , बोले झूठ बोल रहे हो तुम , मै तुम्हे श्राप देता हूँ की तुम्हारी पूजा कही नहीं होगी और इस केतकी के फूलों को किसी भी पूजा में चढ़ाया नहीं जायेगा ! तब से ब्रम्हा जी की पूजा नहीं होती और केतकी के फूलों को पूजा में वर्जित किया गया है ! बोलो हर हर महादेव !
मेरे महादेव अनंत है !
इनमे समस्त ब्रम्हांड समाया है !
कहते है की जीव जब सांस लेता है तो शिव जीव के अंदर होते है और जब जीव सांस छोड़ता है तो वो शिव में स्थापित हो जाता है ! वो भी शिव की तरह अनंत अदभुत हो जाता है ! इसीलिए कहते है !
!भोले की माया भोले ही जानें !
महादेव के साकार रूप की उत्त्पत्ति
शिवजी ने जीवों की रचना एवं उनके संरक्षण का कार्य भार क्रमशः ब्रम्हा जी एवं विष्णु जी को दिया , ब्रम्हा जी के अथाह प्रयास के बाद जीव की रचना तो हो गई परन्तु वे उन जीवों की वृद्धि नहीं कर पा रहे थे , तब ब्रम्हा जी ने शिव जी का आवाहन किया , शिव जी के प्रगट होने पर ब्रम्हा जी ने अपनी समस्या से अवगत कराया तब शिवजी बोले वत्स, मै तुम्हारी भृकुटि से साकार रूप में उत्पन्न होऊंगा तभी मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकता हूँ , तुम इसकेलिए तपस्या करो , ब्रम्हाजी कहे अनुसार तपस्या में लीन हो गए , कई युगों के बाद शिवजी अपने अर्धनारीश्वर रूप में प्रगट हुए, अपने इस रूप में वे अदभुत लग रहे थे , शिवजी ने अपने इस रूप को दो भागों में बाँट लिया, जिसमे एक रूप पुरुष का था जो की वो स्वयं थे और दूसरा रूप स्त्री का था जिनको प्रकृति का नाम दिया गया अर्थात आदिनाथ एवम आदिशक्ति , शिवजी के निर्देशानुसार आदिशक्ति की ऊर्जा समस्त ब्रम्हांड में फ़ैल गयी , तब ब्रम्हा जी को शिव जी ने कहा की नर और नारी की मैथुनी क्रिया करवाओ इससे जीवों की वृद्धि होगी , ब्रम्हा जी ने ऐसा ही किया ! तभी से जीवों की वृद्धि हुई और शिव जी का साकार रूप प्रगट हुआ , शिव जी ने अपने ऊपर संहार की जिम्मेदारी ली, तभी से शंकर जी की अर्धनारीश्वर रूप की पूजा होती है अवं इस अर्धनारीश्वर रूप को जाना जाता है !
शिव ने स्वयं से शक्ति को अलग कर दिया था !
शिवजी ने सदा सभी को दिया ही है ! ऐसे हैं मेरे महादेव , महादेव ने सदैव त्याग ही किया है ! इनको कोई क्या दे सकता है जो स्वयं ही सब कारणों के कारण हैं !
कहते है की जीव जब सांस लेता है तो शिव जीव के अंदर होते है और जब जीव सांस छोड़ता है तो वो शिव में स्थापित हो जाता है ! वो भी शिव की तरह अनंत अदभुत हो जाता है ! इसीलिए कहते है !
!भोले की माया भोले ही जानें !
महादेव के साकार रूप की उत्त्पत्ति
शिवजी ने जीवों की रचना एवं उनके संरक्षण का कार्य भार क्रमशः ब्रम्हा जी एवं विष्णु जी को दिया , ब्रम्हा जी के अथाह प्रयास के बाद जीव की रचना तो हो गई परन्तु वे उन जीवों की वृद्धि नहीं कर पा रहे थे , तब ब्रम्हा जी ने शिव जी का आवाहन किया , शिव जी के प्रगट होने पर ब्रम्हा जी ने अपनी समस्या से अवगत कराया तब शिवजी बोले वत्स, मै तुम्हारी भृकुटि से साकार रूप में उत्पन्न होऊंगा तभी मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकता हूँ , तुम इसकेलिए तपस्या करो , ब्रम्हाजी कहे अनुसार तपस्या में लीन हो गए , कई युगों के बाद शिवजी अपने अर्धनारीश्वर रूप में प्रगट हुए, अपने इस रूप में वे अदभुत लग रहे थे , शिवजी ने अपने इस रूप को दो भागों में बाँट लिया, जिसमे एक रूप पुरुष का था जो की वो स्वयं थे और दूसरा रूप स्त्री का था जिनको प्रकृति का नाम दिया गया अर्थात आदिनाथ एवम आदिशक्ति , शिवजी के निर्देशानुसार आदिशक्ति की ऊर्जा समस्त ब्रम्हांड में फ़ैल गयी , तब ब्रम्हा जी को शिव जी ने कहा की नर और नारी की मैथुनी क्रिया करवाओ इससे जीवों की वृद्धि होगी , ब्रम्हा जी ने ऐसा ही किया ! तभी से जीवों की वृद्धि हुई और शिव जी का साकार रूप प्रगट हुआ , शिव जी ने अपने ऊपर संहार की जिम्मेदारी ली, तभी से शंकर जी की अर्धनारीश्वर रूप की पूजा होती है अवं इस अर्धनारीश्वर रूप को जाना जाता है !
शिव ने स्वयं से शक्ति को अलग कर दिया था !
शिवजी ने सदा सभी को दिया ही है ! ऐसे हैं मेरे महादेव , महादेव ने सदैव त्याग ही किया है ! इनको कोई क्या दे सकता है जो स्वयं ही सब कारणों के कारण हैं !
नमः पार्वतीपतये हरहरहर महादेव की जय..... ॐ नमः शिवायः
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